जीवन्त पहलू – माननीय श्री स्वामी प्रसाद मौर्य
माननीय श्री स्वामी प्रसाद मौर्य के राजनीतिक फिनोमिना को कैसे देखा जाए? यह एक जटिल अभ्यास है। जहां तक सामान्य और निरीह स्तर पर चलते रहने वाले दुष्प्रचार का सवाल है, यह सब बकवास कहे जा सकते हैं। उनकी राजनीति को उनके सामाजिक सरोकारों से मिलाकर ही देखा और परिभाषित किया जा सकता है वह जिस समाज से आते हैं तथा उ.प्र.में निर्विवाद रूप से जिसका सशक्त प्रतिनिधित्व करते हैं, यदि अपवाद को छोड़ दिया जाए तो वह बेबस अवस्था में है। आलोचक यदि कहें कि वह समझौता वादी हैं तो यह उनके व्यक्तित्व के साथ न्याय नहीं होगा। यह कथन भी अनुचित है कि उन्होंने अपने समस्त मूल्यों का परित्याग कर दिया है।
समता से प्रेरित राष्ट्रवादी विचारधारा मौर्य वंश का प्राणतत्व रही है। इतिहास इसका गवाह है। चरमतावादी राष्ट्रवाद का पक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने कभी नहीं किया। वह संविधान वादी हैं और कोई भी योजना जो मनमाने पन को जीवन का आधार बनाती है, वह उसमें फिट नहीं हो सकते। बीसवीं शताब्दी का आधुनिक भारतीय जनतंत्र इन्हीं विचारों से विकसित हुआ है। स्वामी प्रसाद मौर्य की अन्तर्दृष्टि इसे अधिक गहन बनाती है। वे निरंतर इसमें सुधार करने वाले विचार ढूंढ रहे हैं।
वह उस प्रतिमान के विरुद्ध विद्रोह करते हैं जिनकी प्रस्थापनाएं मिथ्या धारणाओं पर आधारित हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य के विश्लेषण में एक ऐसी वैचारिक योजना है जिसमें इतिहास, राजनीतिक प्रक्रियाएं और समकालीन संदर्भ समाहित हैं। यही नये और बेहतर समाज का भ्रूण तैयार करेगी। उनके कार्यों तथा अवदानो पर अनवरत बहस चलती रहेगी। यही भविष्य के विचारों तथा कार्यों को आकार देगी तथा सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करेगी। उनकी सारी बहस उस दिशा को समझने का संकेत देती है जिस ओर राजनीतिक समाज और उसके जटिल संबंध धीरे धीरे आगे बढ़ रहे हैं।वह यह चाहते हैं कि व्यक्ति सुचिता तथा जन भावना द्वारा आरोपित जटिलताओं को पहिचाने और कुशलता पूर्वक आगे बढे।
– डॉ .राजबहादुर मौर्य, झांसी
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