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दर्द मजदूरों का…

Posted on दिसम्बर 26, 2019जुलाई 10, 2020
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अनियंत्रित औद्योगिक पूंजीवाद सामुदायिकता की मनोवैज्ञानिक भावना को क्षति पहुंचाती है। इसका परिणाम समाज को विखंडन वादी प्रवृत्ति के विस्तार के रूप में भुगतना पड़ता है। औद्योगिक जीवन की अवैयक्तिकता मनुष्य को ऐसा पुर्जा बना देती है कि वह बेबसी व लाचारी की उस स्थिति में पहुंच जाता है जिसमें वह स्वयं को भी नहीं समझ पाता। इस परिस्थिति में जन्मा मजदूर स्वतंत्र होते हुए भी उसके उपभोग से वंचित रहता है।

मुक्त अर्थव्यवस्था में मज़दूरी की दर जिंदा रहने के स्तर के समीप आ जाती है। मूल्य का श्रम सिद्धांत अदृश्य हो जाता है। चूंकि मजदूर असंगठित होते हैं अतः उनमें श्रम के सौदेबाजी की क्षमता बहुत दुर्बल होती है। परिणामत: उन्हेंं मालिक की शर्तों पर मज़दूरी करनी पड़ती है। इससे मजदूरों का शोषण गहन बनता है। फिर उनकी मानवीय गरिमा की रक्षा कैसे की जाए? क्या संसदीय राजनीति कोई सम्भावना बनाती है? जहां उनकी अभिव्यक्ति हो, उनके कष्टों के निवारण का प्रयास हो।श्रम मंत्री के रूप में स्वामी प्रसाद मौर्य के प्रयासों को इस संदर्भ में विवेचित किया जा सकता है।

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उ.प्र.मे श्रम मंत्री के रूप में दायित्व संभालने के साथ ही श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने राज – व्यवस्था के माध्यम से मजदूरों के कष्टों के निराकरण का वीणा उठाया। उन्होंने सर्व प्रथम विभागीय अधिकारियों के साथ जनपदों में समीक्षा बैठकें कर मूल जानकारियां हासिल कीं। पूर्व में संचालित योजनाओं को समझा। तत्पश्चात् उन्हें अधिक प्रभावी बनाया। मजदूरों के पंजीयन की फीस घटाई। पंजीयन के नवीनीकरण की अवधि बढ़ाई। मजदूरों के स्वास्थ्य, शिक्षा,आवास की प्रभावी व्यवस्था सुनिश्चित करायी। उनकी बेटियों के सम्मानजनक विवाह के लिए सरकार की ओर से सामूहिक विवाह समारोहों को प्रारंभ कराया। स्वयं मजदूरों के अड्डों का दौरा किया। अधिकारियों की जबाबदेही को प्रभावी रूप से सुनिश्चित किया। लापरवाही पर उन्हें फटकार लगाई। सीधे मजदूरों से संवाद कर उन्हें अपना मोबाइल नंबर भी दिया। मजदूर भाइयों से मार्मिक अपील करते हुए वह कहते हैं कि “आप प्रण करिए कि अपने बच्चों को मजदूर नहीं बनने देंगे। उन्हें अच्छी तालीम दीजिए चाहे इसके लिए आपको कितना भी कष्ट उठाना पड़े।”

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दिनांक 11जून 17 को गौतमबुद्ध नगर में, 28 जून को शाहजहांपुर में, 29 जून को बदायूं में, 19 अगस्त को बहराइच में, 25 सितंबर को नयी दिल्ली में, 4 अक्टूबर को इटावा में, 12 अक्टूबर को कानपुर में, 9 दिसम्बर को इलाहाबाद में, 11 दिसंबर 17 को जनपद मुरादाबाद में, 30 दिसंबर 17 को कुशीनगर में, 13-14 जनवरी 18 को बरेली में, 18 जनवरी18 को गोरखपुर में, 1 फरवरी 18 को कुशीनगर में, 6 फरवरी 18 को फतेहपुर में, 18 फरवरी को बनारस में, 16 मार्च को दिल्ली में, 17 मार्च को नोएडा में, 4 अप्रैल को आगरा में, 18 अप्रैल को बिजनौर में, 24 अप्रैल को मिर्जापुर में स्वामी प्रसाद मौर्य ने मजदूरों की समस्याओं के निराकरण हेतु आयोजित गोष्ठियों, पंजीयन कैम्पों तथा प्रमाण पत्र वितरण कार्यक्रमो में स्वयं भाग लिया। उनका यह क्रम अभी निरंतर जारी है।

– डॉ राजबहादुर मौर्य, झांसी

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