श्री स्वामी प्रसाद मौर्य : इंसानियत की आवाज़
– डॉ. राजबहादुर मौर्य, असिस्टेंट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, बुंदेलखंड कालेज झांसी। फोटो गैलरी- डॉ. संकेत सौरभ, झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत। email: drrajbahadurmourya @ gmail. Com, website : themahamaya.com
उत्तर – प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री तथा विधान परिषद के सदस्य माननीय श्री स्वामी प्रसाद मौर्य सामाजिक और राष्ट्रीय नव निर्माण के लिए प्रतिबद्ध, सकारात्मक बदलाव के पैरोकार, इंसानियत की आवाज हैं। उनकी आवाज में जहां अन्याय, जुर्म और अत्याचार के खिलाफ तीखा और जुझारू तेवर है वहीं प्रेम, दया, ममता और करुणा से परिपूर्ण सहिष्णुता है जो अपनी ओर खींचती है। उनकी आवाज में अधिकार या उपेक्षा का भाव नहीं बल्कि एक अद्भुत चेतना है जिसकी परिधि में प्रेम है।ऐसा प्रेम जिसमें जीवन की स्वाभाविक मुक्ति और आत्म विश्वास की चरम परिणति है।
स्वामी प्रसाद मौर्य के भाषणों में जहां सरकारी दायित्व का भाव होता है वहीं वंचितों की दशा का ह्रदय विदारक करुण क्रंदन भी है जो सबके ह्रदय को झकझोरता है। वह दूरदृष्टा, मनीषी और ज्ञानी भी हैं। उनमें बदलाव को समझने की खूबी है।यही उन्हें एक राजनीतिक चिंतक के दायरे में भी लाते हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में सैकड़ों बेहतरीन शिक्षा संस्थानों की स्थापना में अपना योगदान दिया है। यह संस्थाएं प्रदेश के विभिन्न जनपदों में स्थित हैं। अपने सामाजिक दायित्वों में श्री स्वामी प्रसाद मौर्य शिक्षा, स्वास्थ्य तथा संस्कारों को सर्वोपरि दर्जा देते हैं।
एक राजनीतिक व्यक्ति के रूप में स्वामी प्रसाद मौर्य के लिए राजनीति समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य क्षेत्र है। अपने भाषणों में वह भगवान बुद्ध, बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर और पंडित दीनदयाल उपाध्याय तथा श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अंत्योदय दर्शन को भी उठाते हैं तथा उसे सर्वोदय के साथ शिद्दत से जोड़ते हैं। अपने प्रत्येक वक्तव्य में वह श्रमिक भाईयों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि ‘‘आप मजदूर बने यह आपके बस में नहीं था, परन्तु आप इस बात की शपथ लीजिए कि आप अपने बच्चों को मजदूर नहीं बनने देंगे।”उनका यह उद्बोधन करुणा से परिपूर्ण होता है।
श्री स्वामी प्रसाद मौर्य के उद्बोधन में करुणा के इस भाव पर बुद्धिज्म् का प्रभाव है। परन्तु उनका बुद्धिज्म् केवल रीति-रिवाजों का समुच्चय नहीं है बल्कि एक आधुनिक राजनीतिक विचारधारा और प्रतिबद्धता है जिसमें सामाजिक बेहतरी के साथ राष्ट्र निर्माण और बदलाव की शक्ति अंतर्निहित है।उनके लिए बुद्धिस्ट होने का मतलब करुणा और मैत्री के साथ जनसेवा में सक्रिय, राजनीतिक तौर पर जाग्रत और व्यवहारिक तौर पर कर्मशील होना है।उनके अनुसार राज्य या सरकार का मकसद और दायित्व केवल व्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ाना तथा आर्थिक गैरबराबरी को कम करना ही नहीं है बल्कि सामाजिक न्याय की स्थापना करना भी है। इस समझ में ही मजबूत और शक्तिशाली राष्ट्र वाद की संकल्पना समाहित है।
यह बात और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि बुद्धिज्म ने कभी भी अलगाव की बात नहीं उठाई है और न ही उसका समर्थन किया है। साम्प्रदायिक और नस्लीय पूर्वाग्रहों को नकारकर बुद्धिज्म् राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देता है। वह ज्ञान और अनुभव की रौशनी में वैज्ञानिक चिन्तन की अनिवार्यता को स्थापित करता है ताकि भविष्य की पीढ़ियां नए तरीके से सोचने के लिए प्रेरित हों। इसलिए प्रत्येक बुद्धिस्ट भारतीय राष्ट्र की एकता और अखंडता का प्रबल पक्षधर है।
जब मानव जनित अनुभव ज्ञान से अंतर्गुंफित हो उस पर प्राथमिकता पाता है तब उसके सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक फलितार्थ होने लगते हैं। मनुष्य और उसकी दुनिया सभी तरह के चिंतन और समझ के केन्द्र में आ जाती है। यह किसी प्राधिकार के प्रमाणपत्र को अस्वीकार करता है तथा निहित सम्भावनाओं को आकार देता है। श्री स्वामी प्रसाद मौर्य के विमर्शों की दुनिया की यही आधारशिला है।गहन विमर्श के इस फलक में उथलापन बिल्कुल नहीं है।हॉं इसे समझने के लिए हमें तटस्थ भाव से, किसी पूर्वाग्रह के बिना विचार करना होगा। इस बारे में डाली गयी कोई भी बाधा ज्ञान और समझ को विकृत करके उसे मनमानी कल्पना का शिकार बना देगी।
यथार्थ … स्वामी प्रसाद मौर्य जी स्वयं में एक संस्था है और हम लोगो के लिए प्रेरणा स्तंभ है
जी, बिल्कुल सही कहा आपने डॉ. साहब
बहुत सुन्दर लिखा आप यथार्थ के साथ
जी सर, आभार आपका