–डॉ. राजबहादुर मौर्य, श्रीमती कमलेश मौर्या, इंजीनियर सपना मौर्या, डॉ. संकेत सौरभ, झाँसी (उत्तर-प्रदेश)
विगत वर्षों की तरह इस वर्ष भी 2 जनवरी को, उत्तर- प्रदेश सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री और वर्तमान में राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय श्री स्वामी प्रसाद मौर्य का जन्मदिन हर्षोल्लास के साथ पूरे देश और प्रदेश में उनके अनगिनत प्यार करने वालों तथा प्रशंसकों व समर्थकों के द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है । कहीं रक्तदान करके, कहीं श्रमदान करके, कहीं ज़रूरतमंदों की सेवा करके, कहीं सर्दी में ठिठुरते लोगों को गर्म ऊनी कपड़े देकर, कहीं निःशुल्क चिकित्सा शिविर लगाकर, कहीं भूखे प्यासे लोगों को भोजन देकर, कहीं ज़रूरतमंद बच्चों को पढ़ाई की सामग्री वितरित कर, कहीं शोभायात्रा निकाल कर तो कहीं जन जागरूकता रैली निकाल कर उनके अनुयायी इस दिन को यादगार बनाने में जुटे हुए हैं । यह अनायास नहीं है कि आज उनके जन्मदिन पर अनगिनत लोग इस मुहिम में शामिल हैं । एक व्यक्ति इतने लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हो इसके लिए उसे अपने जीवन को समाज के लिए समर्पित करना पड़ता है, खपाना पड़ता है । अपनी ज़िंदगी की निजता, वैयक्तिक पारिवारिक जीवन की जीवन की क़ुर्बानी, निजी हितों की अनदेखी और दबे, कुचले, लाचार, बेबस और असहाय लोगों के बीच रहकर उनके सुख दुःख का हिस्सा बनना पड़ता है । स्वामी प्रसाद मौर्य का अब तक का पूरा जीवन इसकी मिसाल है ।
जन्म और तत्कालीन परिवेश :
स्वामी प्रसाद मौर्य का जन्म दिनांक 2 जनवरी, 1954 को उस समय हुआ जब देश को आज़ाद हुए एक दशक भी नहीं बीता था और पहले आम चुनाव हुए तो अभी मात्र दो वर्ष ही हुए थे । देश लोकतांत्रिक मूल्यों और आदर्शों के साथ उसकी प्रक्रिया में प्रवेश कर रहा था । राष्ट्रीय एकीकरण का दौर चल रहा था और राजे- रजवाड़ों की सत्ता आख़िरी पड़ाव की ओर थी । मध्ययुगीन संस्थाओं और विचारों के तिरोहित होने पर व्यक्ति राजतंत्रीय सम्बंधों से मुक्ति का अनुभव करने लगा था । शताब्दियों से सामन्ती वैचारिक दासता में जकड़ा हुआ व्यक्ति अपनी मानसिकता की बेड़ियों को तोड़कर आज़ाद हो रहा था । सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक चिंतकों ने अपने को जागीरदारों और जमींदारों के क़ानूनों से मुक्त कर स्वतंत्र रूप में देखना आरम्भ कर दिया था । राजनीतिक परिवेश में वंशानुगत स्थिति का ह्रास होने लगा था । ऐसे परिवेश में साहसी लोगों के आचरण की कुण्ठाएँ घट रही थीं । स्वतंत्रता का यह एहसास उसे संगठित धर्म की विसंगतियों और उसकी संस्थाओं में भागीदारी के लिए विद्रोह करने की प्रेरणा दे रहा था । विद्रोह करने की यही प्रेरणा ‘असहमति की अवतारणा’ को विस्तार देती है तथा ‘विज्ञान में मनुष्य की आस्था’ और भूमिका को बढ़ावा देती है । इस प्रकार देश की आज़ादी का तत्कालीन दौर एक नए दर्शन और चिंतन से अनुप्राणित था जहाँ राजसत्ता का काम राष्ट्र के एकीकरण के साथ सामाजिक रूपांतरण भी था ।
आज़ादी और सामाजिक परिवर्तन :
स्वतंत्र भारत ने जब अपनी राज व्यवस्था का प्रारम्भ किया तब इसके साथ ही सामाजिक परिवर्तन का मुद्दा भी उठा । भारत में सामाजिक परिवर्तन का आंदोलन यहाँ सामाजिक व्यवस्था में निहित उन प्रश्नों से टकराता है जो मानवीय गरिमा और सम्मान को क्षतिग्रस्त करता है । यह तथागत बुद्ध, संत कबीर, महात्मा ज्योतिबा राव फुले, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर, संत रविदास, संत गाडगे, पेरियार रामास्वामी नायकर तथा मान्यवर कांशीराम साहेब जैसे महापुरुषों से अपनी वैचारिक ऊर्जा ग्रहण करता है । सामाजिक परिवर्तन आन्दोलन का कारवाँ देश में वर्ण व्यवस्था तथा उस पाखंड के विरुद्ध ऐसी प्रतिक्रिया है जो अन्याय, अत्याचार तथा शोषण के किसी भी रूप को उचित ठहराने के लिए विवेकीकरण की पैदा की जाने वाली अन्तर्दृष्टि को जड़ से उखाड़ता है । स्वामी प्रसाद मौर्य इस आन्दोलन के प्रहरी हैं और वह अपने सामाजिक और राजनीतिक जीवन के प्रारम्भिक दौर से ही बड़ी बेबाक़ी के साथ कहते आ रहे हैं कि वर्ण व्यवस्था और उस पर आधारित सामाजिक निर्माण की परिकल्पना अथवा उसका गुणगान ऐसी गलती है जिसको ठीक किया जाना ज़रूरी है । यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे ठीक किए बिना समरसता और समानता पर आधारित समाज की अवधारणा सम्भव नहीं है । ‘क्या है’ और ‘क्या होना चाहिए’ इस शाश्वत तनाव से मानव जीवन कभी मुक्त नहीं हो सकता । स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने सामाजिक और राजनैतिक जीवन में उन सभी प्रश्नों को उठाया जो समाज में अलगाव पैदा करते हैं । वह कहते हैं कि अपने हक़ और हकूक की लड़ाई सिर उठा कर लड़ो, सिर झुका कर नहीं ।
राजनीति, समाज और बदलाव का रिश्ता :
स्वामी प्रसाद मौर्य अपने उद्बोधनों में एक साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य को मजबूती से उठाते हैं । सवाल यह है कि वैचारिकी के इस पहलू को कैसे परिभाषित किया जाए ? वस्तुतः परिवार, समाज और राज्य वह केंद्र होते हैं जहाँ मनुष्य अपना सामूहिक अस्तित्व ढूंढता है । मनुष्य को राजनीतिक जीवन की समग्रता राज्य में ही मिलती है । यद्यपि यहाँ सामूहिकता की सारी प्रक्रिया अत्यंत धीमी और क्रमिक होती है किन्तु इन सब गतिविधियों का सामान्य प्रभाव व्यक्ति की व्यक्तिगतता को राज्य की समग्रता के विरुध्द लाकर खड़ा करता है । परिवर्तन, पतन और स्थिरता का यह त्रिभुज कभी-कभी राज्य से टकराता है तो कभी समाज से । जब राज्य से टकराहट होती है तब राज व्यवस्था उसे अपने में समाहित कर लेती है । लेकिन जब समाज व्यवस्था से टकराव होता है तो संघर्ष की स्थिति पैदा होती है । यह कल्पना करना कठिन है कि यदि राज व्यवस्था में लोच न हो तो क्या समाज में सामूहिक विस्फोट को लम्बे समय तक टाला जा सकता है । अनेक देशों का उदाहरण डरावना है ।
स्वामी प्रसाद मौर्य बहुजन समाज की आवाज़ हैं । यह सर्वविदित है कि भारत में वर्ण व्यवस्था की असमान और अपमानजनक व्यवस्था के कारण समाज के एक बड़े तबके में सामाजिक व्यवस्था के प्रति आक्रोश है । समकालीन राज व्यवस्था में स्वामी प्रसाद मौर्य की दृष्टि इसे स्पष्टता से अभिव्यक्त करती है । वह संवैधानिकता की पैरोकारी करते हुए यह कहते हैं कि धर्मशास्त्र जैसी समग्र व्यवस्था के आधार पर व्यक्ति को देखना या मूल्यांकित करना ग़लत है । वह जोर देकर कहते हैं कि राजनीति, नीति और धर्म से भिन्न है ।
उत्तरदायित्व का बोध :
स्वामी प्रसाद मौर्य अपने उत्तरदायित्व के निर्वहन के लिए हर स्तर पर कार्य करते हैं । राजनीति उनके लिए एक माध्यम है जो सामाजिक उत्तरदायित्व से उन्हें जोड़ती है । इसके लिए वह हज़ारों किलोमीटर की यात्रा करते हैं । अनगिनत लोगों से मिलते हैं । उनके दुख दर्द के भागीदार बनते हैं । गॉंव की गलियों से लेकर विधानसभा की गैलरियों तक वह आम जनता की आवाज़ बनते हैं। अपने लगभग पॉंच दशक के सामाजिक और राजनैतिक जीवन में उन्होंने तक़रीबन 40 लाख किलोमीटर से अधिक की यात्राएँ की हैं । उनकी दुनिया आम लोगों के जीवन से जुड़ी हुई है । यही कारण है कि वह बिना रुके, बिना थके हज़ारों किलोमीटर की यात्रा कर लेना उनके लिए सामान्य सी बात है । उनकी रात अपनी नहीं, दिन अपने नहीं, गति अपनी नहीं, मन अपना नहीं, नींद अपनी नहीं । कितनी रातें और कितने दिन रास्ते में बीते हैं इसका कोई हिसाब नहीं । स्वामी प्रसाद मौर्य सकारात्मक बदलाव के पैरोकार हैं । समाज में सबके लिए समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तथा बेहतर स्वास्थ्य जैसी बुनियादी बातों पर वह निरंतर जोर देते रहे हैं । उनके दिल में सबके लिए स्नेह और सम्मान है । हॉं, यह बात ज़रूर है कि वह स्वयं स्वाभिमान का जीवन जीते हैं तथा दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं । उनके स्वर में ईमानदारी और आत्मीयता की झलक है । लोग जितना उन्हें पहचानते जाएँगे उतना ही उनके प्रति सम्मान का भाव प्रदर्शित करेंगे ।
अन्ततः :
हमारा समाज बेहद कृतज्ञ लोगों से मिलकर बना है । समाज को अपना प्रेम तो दीजिए । अपने अलावा दूसरों के लिए भी कुछ पल जीकर भी तो देखिए । इसके बदले आपको कभी निराश नहीं होना पड़ेगा । जब आप समाज के लिए कुछ करते हैं तो समाज दोनों हाथों से आप पर अपना प्यार कैसे लुटाता है, यह देखना हो तो स्वामी प्रसाद मौर्य के जीवन को पलटकर देख लीजिए, उत्तर मिल जाएगा । उनके सहज, सरल और स्नेहिल व्यक्तित्व ने अनगिनत लोगों की ज़िंदगियों को छुआ, उन्हें जिजीविषा और जीवट के साथ जीने का ढंग सिखाया । ऐसे कितने ही लोग होंगे जो उनसे कभी मिले ही नहीं होंगे लेकिन उनका भी उनसे अनजाना रिश्ता है ।
उनका पैग़ाम है कि निरंतर चलते रहना ही ज़िंदगी है, चाहे वह पहाड़ों से गुज़रे या समतल मैदानों से । एक व्यक्ति को अथवा एक समूह को प्यार करने के बदले पूरी मानव जाति को प्यार करना अधिक अच्छी भावना है… स्वामी प्रसाद मौर्य का जीवन इसका श्रेष्ठ उदाहरण है । उनका जीवन हमें सिखाता है कि महान उद्देश्य के लिए यत्न करने तथा उसमें मिलने वाले कष्ट का आनन्द उठाना चाहिए ।
मेरे जैसे अनगिनत लोग के प्रेरणा स्रोत, दीन दुखियों के मसीहा, आत्मसम्मान और स्वाभिमान के साथ जीने की सीख देने वाले, कृतज्ञता की मुक्तामाला, माननीय श्री स्वामी प्रसाद मौर्य जी को उनके जन्मदिन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ..!
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