मौर्य चेतना संघर्ष समिति की स्थापना

समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, कुरीतियों, गलत परम्पराओं तथा रूठिवादिता को समाप्त करने, परम्परावादिता और भाग्यवादिता की जकड़न से समाज को दूर हटाना, विषमता में समता का समावेश करने, पिछड़े पन और अंधविश्वास को दूर करने, समाज के अत्यंत गरीब और प्रतिभाशाली छात्र छात्राओं की आर्थिक सहायता करने, समाज में नई जागृति और नई चेतना पैदा करने तथा मौर्य राजवंश के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति से लोगों को परिचित कराने के उद्देश्य से गुरूजी ने वर्ष 1996 में मौर्य चेतना संघर्ष चेतना समिति का गठन किया।

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लगभग 10 वर्षों तक इस समिति ने बड़े पैमाने पर समाज में जागरूकता अभियान चलाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।गांव, गली, कूचे मुहल्ले और खेत खलिहान तक इस समिति का कार्य क्षेत्र था। समिति के जिम्मेदार कार्यकर्ताओं द्वारा गांव- गांव जाकर वहां रात्रि विश्राम किया जाता था तथा भोजन के बाद वहीं सभाएं आयोजित की जाती थीं। इन कार्यक्रमों में गलत परम्पराओं और प्रथाओं का विरोध किया जाता था। शिक्षा और संगठन के साथ साथ भगवान बुद्ध के बताए रास्ते पर चलने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया जाता था।

इस सबका प्रभाव यह हुआ कि क्षेत्र में व्यापक पैमाने पर समाज में जागरूकता पैदा हुई। शिक्षा के प्रति लोगों में ललक बढ़ी। बड़े पैमाने पर विद्यालय और महाविद्यालयों की स्थापना का सिलसिला शुरू हुआ। लोगों ने बुद्ध, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, महामना ज्योतिबा फूले तथा बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को जानना, पहचानना और उन्हें मानना प्रारम्भ किया।

गुरुजी का गाँव, मकान, सुट्ठा हरदो

राजनीति सहभागिता

सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ व्यक्ति राजनीति से बिल्कुल अलग नहीं हो सकता क्योंकि सामाजिक कार्यों की पूर्णाहुति राजनीतिक व्यवस्था में ही होती है। गुरूजी भी यद्यपि सक्रिय राजनीति में तो कभी नहीं रहे, परन्तु सामाजिक कार्यकर्ता बन राजनीति को सहयोग और समर्थन देते रहे। वर्ष 1983-84 में जब श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने जनपद रायबरेली को अपनी कर्मभूमि बनाया और विधानसभा क्षेत्र डलमऊ से अपनी राजनीतिक पारी की शुरूआत की तब से गुरूजी उन्हीं के साथ हो लिए। तब से आजीवन वह उन्हीं की टीम के अनुशासित सिपाही बने रहे, कभी अपनी निष्ठा नहीं बदली। इसके बदले में उन्हें श्री स्वामी प्रसाद मौर्य का अपार स्नेह, सम्मान और सहयोग मिला।

माननीय श्री स्वामी प्रसाद मौर्य निजी तौर उन्हें बहुत सम्मान देते रहे हैं। गुरु जी के यहां होने वाले सभी छोटे बड़े कार्यक्रमों में अपनी व्यस्तताओं के बावजूद वह हमेशा आते रहे हैं। उनके परिनिर्वाण पर माननीय मंत्री जी श्री स्वामी प्रसाद मौर्य अपने सभी कार्यक्रमों को निरस्त कर उनके अंतिम दर्शन और श्रृद्धांजलि अर्पित करने स्वयं उनके घर पर पहुंचे और उन्हें भारी मन और नम आंखों से अंतिम बिदाई दिया। आजीवन सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहने वाले गुरूजी जी और उनके परिवार के लिए यह सर्वोच्च सम्मान था।

सांस्कृतिक अवदान

गुरूजी, श्री गिरिजा शंकर मौर्य आजीवन क्षेत्र में सांस्कृतिक बदलाव के कारवां को गति देते रहे। हमारे जैसे अनगिनत लोग उन्हीं के कारण सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, महामना ज्योतिबा फूले, माता सावित्री बाई फूले, सन्त कबीर, सन्त रविदास, गाडगे बाबा, रामास्वामी नायकर पेरियार तथा बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर को जीवन के प्रारम्भिक दौर में जान सके। दिनांक ३ एवं 4 अप्रैल, 2005 ई. में तथागत भिक्षु सेवक संघ, परिवार जनपद रायबरेली के द्वारा गुरूजी के घर के सामने ही स्थित प्राथमिक विद्यालय, सुट्ठा हरदो में दो दिवसीय कार्यक्रम, गुरूजी के सहयोग और सानिध्य में सम्पन्न हुआ था। इस सारे आयोजन की जिम्मेदारी वहीं के निवासी श्री अमित कुमार मौर्य ने सम्भाली थी।

इसके अतिरिक्त भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का सिलसिला लगातार चलता रहता था। दिनांक 15-12-1996 को उनके घर पर, 26-12-1996 को दीनशाह गौरा में, 29-08-2004 को महात्मा गौतम बुद्ध बालिका विद्यालय, माफी कुरौली बुधकर में, दिनांक 26-09-2004 को बाबा का पुरवा में, श्री राम आसरे मौर्य जी के निवास स्थान पर, दिनांक 31-10-2004 को रसूलपुर धरांवा में, श्री राम पाल मौर्य की बाग में, दिनांक 05-12-2004 को पूरे अवर्थिन दाउद पुर गडई में श्री अमरेश मौर्य के दरवाजे पर तथा इसी प्रकार लगभग वहां की सभी ग्राम पंचायतों में अज्ञानता के खिलाफ तथा शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए गुरूजी का अभियान चलता रहता था।

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गुरूजी की टीम

गुरूजी की टीम के साथियों में श्री लालमनऊ मौर्य, दीनशाह गौरा, श्री राम मौर्य, प्रवक्ता इंटर कॉलेज गौरा, श्री राजाराम मौर्य,गौरा, मास्टर शिव नारायण वर्मा, श्री भवानी भीख मौर्य, गदागंज, डॉ. एस. बी. मौर्य, जगतपुर, श्री चन्द्र भान मौर्य, धमधमा, श्री शिवराज मौर्य, बेहीखोर, श्री कर्ण बहादुर मौर्य, कैली आजाद पुर, श्री मुकेश कुमार मौर्य, कैली, श्री राम आसरे मौर्य, गौरा बाजार, श्री जगदीश मौर्य, बिन्नवां, राम कृष्ण मौर्य, रसूलपुर धरांवा, श्री धनऊ, श्री राजदेव मौर्य, पूरे बारिन का पुरवा, एडवोकेट सूर्य भान मौर्य, गौरा, श्री शेर बहादुर मौर्य, गदागंज, श्री भारत मौर्य, श्री डी. के. मौर्य, जलाल पुर धई, हीरालाल मौर्य, पूरे पनवारी, श्री संत प्रसाद मौर्य, अलीपुर चकराई प्रमुख थे।

गुरुजी के टीम के साथी

इसके अलावा श्री जंगबहादुर मौर्य, पनवारी, राम किशन मौर्य, शेखूपुर, गंगा दयाल मौर्य, नयापुरवा, श्री रंजीत कुमार मौर्य, नारायण पुर बन्ना, ओ. पी. मौर्य, चंदनिहा, रामबरन मौर्य, हमीरपुर, श्री श्याम सुन्दर मौर्य, माफी, राम प्रताप मौर्य, सुदामा पुर, ओम प्रकाश मौर्य, बेलाखारा, विजय पाल मौर्य, हजरत गंज, राजकुमार मौर्य, खरगवनपुर, श्याम लाल मौर्य, कनकपुर, रामसुमेर मौर्य, गोविन्द पुर माधव, शत्रुघ्न शाक्य, बीक चरूहार, दिलीप कुमार मौर्य, पयागपुर, सूरजदीन मौर्य, मेलखा साहब, राम मनोहर मौर्य, बसंतीपुर, राम शंकर मौर्य, चूली भी गुरूजी की टीम के सक्रिय सदस्य थे।

भावी पीढ़ियों को प्रेरणा

गुरूजी श्री गिरिजा शंकर मौर्य जी अब हमारे बीच में नहीं हैं, परन्तु उनकी दी हुई शिक्षाएं, उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग, सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण उनके गीत, उनके अनोखे और जुझारू तेवर की स्मृतियां, सामाजिक कार्यों को प्रेरित करने वाली उनकी सीख, सामाजिक नव निर्माण के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की मजबूत झलक, जज्बा, काबिलियत और प्रतिबद्धता के साथ जीवन जीने की कला और प्रेरणा तथा मजबूती के साथ प्रतिदिन तथा निरंतर गतिमान होने का सिलसिला हम सबको हमेशा उनकी याद दिलाता रहेगा। हमारी प्रतिबद्धता है और हमारा विश्वास है कि हम सब मिलकर गुरूजी के विजन और मिशन को निरंतर आगे बढ़ाएंगे, अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे।

अन्ततः

दार्शनिक भाषा में कहा जाए तो मृत्यु, नवीन जीवन का सृजन है। आज से ढाई हजार साल पहले भगवान बुद्ध ने कहा था कि जीवन और मृत्यु का चक्र हमारी अज्ञानता का परिणाम है। तिक न्यात हन्ह ने अपनी पुस्तक- जहं जहं चरन परे गौतम के, के अध्याय इक्यासी में पुरातन पथ, धवल मेघ के अंतर्गत बुद्ध के शिष्य स्वास्ति के वचनों को उद्धृत करते हुए लिखा है- “बुद्ध का महापरिनिर्वाण हो गया है, किन्तु बुद्ध पहले की अपेक्षा कहीं अधिक विद्यमान हैं। वह बोधिवृक्ष में हैं, जल में हैं, हरी घास में हैं, धवल मेघों और पत्तों में हैं। सभी वस्तुओं पर सजगता से दृष्टि डालना, शांति पूर्वक पग उठाना और करुणामय भाव से मुस्कराना, किसी के कलह को शांत करना, कहीं लगी हुई आग को बुझाना और किसी से प्रेम पूर्वक दो बातें करना बुद्धत्व है।”

हमारे गुरूजी भी यहीं पर जन्मे थे, यहीं पले बढ़े, यहीं जिए और यहीं अंतिम सांस लिए। उनकी सारी स्मृतियां, सारे जीवन के सहोदर, वह मिट्टी, वह पानी, वह आग, वह वायु, वह गगन, वह वृक्ष सब कुछ वहीं है जहाँ वह आज के सदियों पहले था। जो भी इन सब का अनुभव करेगा, इनसे रिश्ता जोड़ेगा, इनसे संवाद करेगा, इनको प्यार करेगा, वह हमेशा गुरूजी को देख पाएगा, उनसे बातें कर पाएगा, उन्हें प्यार कर पाएगा। यही इस लोक से हमारा और आपका नाता है।

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