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अस्तित्व के संकट से जूझ रहे “ओंगी आदिवासी”…

Posted on मार्च 10, 2020जुलाई 12, 2020
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अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के छोटे निकोबार द्वीप समूह में पायी जाने वाली “ओंगी” आदिवासी जनजाति आज अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। आज लगभग 100 की संख्या में यह बचे हैं। यह “निग्रिटो” नस्ल के हैं।

अंग्रेजी शासन के दौरान यह अंग्रेजों की हिंसा के शिकार हुए। उन्होंने इस द्वीप में अंग्रेजों को आने से रोका, किंतु उनके धनुष -बाण शक्ति शाली अंग्रेजों की बंदूकों का मुकाबला नहीं कर सके और उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा। “ओंगी” नाम मात्र के कपड़े पहनते हैं। पुरुष एक पतली सी लंगोटी पहनते हैं और स्त्रियां नारियल के रेशे से बनी नारियल के आकार की गेंद को कमर से एक पतली डोरी के सहारे सामने से दो टांगों के बीच लटका देती हैं। अधिकांश ओंगी अब एक आदिवासी बस्ती “डिनोंग क्रीकि” में रहते हैं। यह अपनी परम्पराओं में जीना पसंद करते हैं। शादी -ब्याह के मामलों में इनके यहां एक अनूठा रीति-रिवाज है। किसी नवयुवती की शादी बूढ़े व्यक्ति से हो जाती है तथा नवयुवक की शादी किसी बुढ़िया से। यदि किसी वृद्ध व्यक्ति की पत्नी की मौत हो जाती है तो उसे दूसरी शादी करने में प्राथमिकता दी जाती है और इसी प्रकार यदि कोई वृद्धा विधवा हो जाती है तो उसे दूसरी शादी में प्राथमिकता दी जाती है। ओंगी दम्पति एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पित व निष्ठावान रहते हैं।

“ओंगी” आदिवासी समुदाय का जीवन जंगली फलों, समुद्री मछलियों तथा जंगली जानवरों के शिकार पर आधारित है। पहले तो वह बाहरी व्यक्तियों से कुछ भी नहीं लेते थे।वह दी गई चीजों को जला डालते थे। केवल लंगोट का कपड़ा और कुल्हाड़ी का लोहा -पाता इतना ही लेते हैं। परंतु इधर कुछ समय से यह लोग सरकारी सुविधाएं लेने लगे हैं। विपरीत परिस्थितियों तथा अभाव ग्रस्त जीवन ने इनकी शारीरिक शक्ति को क्षीण कर दिया है।अब अधिकांश डोंगी कमजोर हैं और कुछ क्षय रोग से पीड़ित हैं।अब यहां प्रशासन द्वारा एक अस्पताल की व्यवस्था कर दी गई है। प्रशासन ने इनके आवास के लिए भवन भी बनाए हैं, परंतु खानाबदोश जीवन बिताने के अभ्यस्त होने तथा छोटी -छोटी गुफाओं की तरह घास -फूस की झोपड़ियों में रहने के आदी होने के कारण इन्हें बड़े आवासों में रहना अच्छा नहीं लगता और जब भी इन्हें मौका मिलता है यह चुपचाप समीप के घने जंगलों में खिसक जाते हैं।

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ओंगी आदिवासी समुदाय की बस्ती के चारों ओर सरकारी रक्षकों का पहरा रहता है। उनके संपर्क में एक भारतीय अधिकारी रहता है। उनके खून के नमूने द्वीप के बाहर ले जाना मना है। अनुमान से लगभग एक लाख वर्ष पहले की यह आबादी है।

यद्यपि भारत सरकार निरंतर प्रयास कर रही है कि ओंगी आदिवासी समाज में बेहतरी लायी जाए। इसीलिए उनके स्वास्थ्य, शिक्षा,आवास तथा भोजन में सरकार कुछ अधिक करने के लिए प्रयत्नशील है। इस आदिवासी समुदाय को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में निरंतर प्रयास की जरूरत है।

-डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी


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