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डामोर आदिवासी

Posted on अप्रैल 28, 2020जुलाई 12, 2020
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डामोर आदिवासी मूल रूप से गुजरात राज्य के निवासी हैं। राजस्थान में भी इनकी जनसंख्या उदयपुर, डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा में निवास करती है। इन्हें डामरिया तथा दामोर नामों से भी जाना जाता है। राजस्थान के भीलों में भी डामोर गोत्र पाया जाता है। इसलिए इन्हें भील समुदाय का उपभाग भी माना जाता है। राजस्थान के डामोर अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं जबकि गुजरात के डामोर इससे बाहर हैं। राजस्थान में डामोर मुख्यत:दो भागों में विभक्त हैं- उच्च डामोर और निम्न डामोर।इन दोनों भागों के लोग एक-दूसरे को आपस में पृथक मानते हैं। दोनों में पाये जाने वाले श्रेष्ठता बोध के कारण इनमें आपस में विवाह वर्जित है।

डामोर बिखरे गांवों में निवास करते हैं। इनकी सबसे छोटी इकाई फला होती है। यह नाम उनके संस्थापकों, जो इनका कोई पूर्वज होता है, के आधार पर रखा जाता है। एक गांव में निवास करने वाले लोग सामान्यत एक ही गोत्र से होते हैं। घर प्राय: कच्चे एवं छतें केलू की छायी हुई होती हैं। घर बड़े साफ़ सुथरे तथा सुविधा जनक होते हैं। डामोर बहुत ही सामान्य भोजन करते हैं।मक्का इनका प्रमुख खाद्य है।मक्के की राब इन्हें बहुत प्रिय है। सरकारी व्यवस्था के कारण अब इनमें गेहूं खाने का चलन बढ़ा है।डामोरों का मुख्य व्यवसाय खेती है। खेती की कमी तथा अनुपजाऊ व अधिक लागत आने के कारण अब यह लोग अपनी जीविका दिहाड़ी मजदूरी से चलाते हैं।

डामोर समुदाय का पहनावा अभी भी परम्परागत है। पुरुष धोती- कुर्ता या कमीज़ तथा शिर पर सफेद रंग की पगड़ी पहनते हैं। महिलाएं गहरे चटकीले रंग के घांघरे, साड़ी व ब्लाउज़ पहनती हैं। विधवा स्त्री काले व गहरे नीले रंग के वस्त्र पहनती है।डामोरों के आभूषण प्राय: चांदी, पीतल,गिलट, रांगा, कांसा आदि धातुओं के होते हैं। कुछ सम्पन्न महिलाएं सोने के आभूषण भी पहनती हैं।। डामोर पुरुष कानों में बालियां या मुरकियां और अंगूठियां पहनते हैं।स्त्रियां सिर पर बोर, कानों में बालियां,गले में हंसली, हाथली और मोदलिए, हाथों में चूड़ियां (गोरणियां) तथा पैरों में कड़े पहनती हैं।।

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प्रारंभ से इनमें बाल विवाह का चलन रहा है जो अब धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। विवाह का प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से भेजा जाता है। वधूमूल्य का चलन है जिसमें कोई रियायत नहीं दी जाती है। विवाह के बाद पहले बच्चे का जन्म लड़के के पिता के घर होता है। पुत्र होने की सूचना थाली बजाकर दी जाती है। पहले प्रसव का कार्य घर की महिलाएं ही करती थीं, अब सरकारी सुविधाएं भी लेने लगे हैं। नामकरण सहित अन्य संस्कारों में बुआ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।। डामोरों में गोद लेने की भी प्रथा है। विधवा विवाह की अनुमति परम्पराओं के अनुसार है। धार्मिक रूप से डामोर आत्मवादी होते हैं परंतु अब वह काफी हद तक हिंदू धर्म के करीब आ गए हैं। हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करने लगे हैं। इनमें शिक्षा की कमी के कारण शिक्षित व्यक्ति कम हैं।इसकी वजह से सरकारी नौकरियों में आरक्षण के बावजूद इनका प्रतिशत लगभग सून्य है।

– डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी

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