Skip to content
Menu
The Mahamaya
  • Home
  • Articles
  • Tribes In India
  • Buddhist Caves
  • Book Reviews
  • Memories
  • All Posts
  • Hon. Swami Prasad Mourya
  • Gallery
  • About
  • hi हिन्दी
    en Englishhi हिन्दी
The Mahamaya

सेवा भाव से परिपूर्ण, ग्राम्य- संगीत के प्रेमी – “मिजो जनजाति” के लोग…

Posted on अप्रैल 7, 2020जुलाई 12, 2020
Advertisement

अपनी प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण, पूर्वोत्तर भारत का पर्वतीय प्रदेश, मिज़ोरम “मिजो जनजाति”के आवास स्थल के रूप में जाना जाता है।असीम विविधता, अपार सौन्दर्य,जैविकी की प्रचुरता से लबालब भरे मिजोरम के मिजो लोग अपने सेवा -भाव तथा ग्राम्य- संगीत पर आधारित लोकगीतों के लिए पूरे देश में जाने जाते हैं।

प्रकृति प्रेमी मिजो अपने इस सुंदरतम अंचल की गौरव गाथा गाते नहीं थकते। यहां के 60 प्रतिशत लोग कृषि कार्य में लगे हुए हैं। मिजोरम के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 91.27 प्रतिशत भाग वनों से आच्छादित है। समुद्र तल से लगभग 4,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित पर्वतीय नगर आइजोल, मिज़ोरम का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक केन्द्र है। “वानतांग” जल प्रपात मिजोरम में सबसे ऊंचा और अति सुन्दर जल प्रपात है। “तामदिल” यहां की एक प्राकृतिक झील है जहां मनोहारी वन हैं। फ़रवरी 1987 में मिज़ोरम भारतीय संघ का 23 वां राज्य बना। पूर्व में यह असम जिले के “लुशाई हिल्स” के नाम से जाना जाता था। 1972 में इसे एक केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया था। राज्य की लम्बाई उत्तर से दक्षिण तक 277 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम की चौड़ाई 121 किलोमीटर है। असम, त्रिपुरा तथा मणिपुर की सीमा इससे मिलती है। बर्मा तथा बांग्लादेश के साथ इस राज्य की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा 722 किलोमीटर लंबी है।

मिज़ोरम 8 जिलों, एजावी, लुड्लेई, चम्पाई, मामित, कोलासिब, सेरछिप, घिमटुइपुई तथा लोड्त्लाई में विभाजित है। यह 21.19 से 24.35 सेल्सियस अक्षांश देशान्तर के पूर्व में ऊष्णकटिबन्धीय प्रदेशों के बीच स्थित है। कर्क रेखा, राजधानी आइजोल के ऊपर से गुजरती है। त्लोंड् (धलेश्वरी),तुइरियाल (सोनाई),तुइवो़ल खोथ्लांड् तुइपुइ (कर्ण फुली), एवं छिमतुइपुइ (कोलाडाइन) यहां की महत्त्वपूर्ण नदियां हैं। मिजोरम की सबसे ऊंची चोटी फोड्पुइ (नील पर्वत) 2,210 मीटर अर्थात् 7,100 फ़ीट ऊंची है। अन्य ऊंची चोटियों में ब्लू -माउंटेन, लेड्तेडं, नाउनोआरजो तथा सेन्त्लांड् हैं।

मिजो जनजाति के उद्भव के बारे में कई प्रकार की मान्यताएं हैं।मिथक है कि यह इजरायल के दस गुमशुदा कबीलों में से उत्पन्न हुए। वहीं के एक लेखक लियाड्खाइया ने 1920 में प्रकाशित अपनी पुस्तक मिजो चान्चिन में लिखा है कि “मिजो नोहा के तीन पुत्रों में से एक जाफेथ के उत्तराधिकारी हैं।” एक तबका यह भी सोचता है कि मिजो समुदाय चीन के चेन -लुड् के शासन काल के दौरान वहां से चलकर आये थे। सम्भवतः इसी से मिजो का “छिनलुड्” नाम भी है। इस संदर्भ से परे एक मान्यता यह भी है कि मिजो लोग मंगोलियन मूल के हैं।वे मंगोलियन प्रजाति की उन महान लहरों के भाग हैं जो प्राचीन काल में पूर्व के बाहर और एशिया के दक्षिण में छितर कर फैल गये थे। प्रमाण बताते हैं कि मिजो यूनान प्रान्त (चीन) से बर्मा के शान प्रांत से होकर पश्चिम की ओर बढ़ते गए। इस प्रकिया में उन्होंने अपने मिजो परिवारों जिन्हें “लूजे” कहा जाता है,को बर्मा में ही छोड़ दिया।

Related -  शोकाकुल परिवारों के साथ....

मिजोरम की मिजो जनजाति राज्य के सुसंगत नमूने का अनूठा व विशिष्ट उदाहरण है। यहां एक सुव्यवस्थित समाज है जिसमें सामाजिक भूमिकाएं व उत्तरदायित्व स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं। मिजो भाषा का भारत की आर्य भाषाओं से कोई संबंध नहीं है। भाषाई दृष्टि से यह लोग तिब्बती बर्मी परिवार की भाषाओं में से एक मिजो ही बोलते हैं।स्वयं मिजो बोली बर्मा या तिब्बत की भाषाओं की अपेक्षा, चीन की भाषाओं से अधिक निकट है। कुछ छोटी- छोटी बोलियां जैसे- ह्मार,लाखेर,राल्ते यहां हैं, किन्तु” मिजो- टोड्” ही राज्य की स्वीकृत सरकारी तथा मातृभाषा है। मिजो लोगों का गांव सामान्यतया किसी पहाड़ी पर होता है तथा एक छोटी इकाई होता है। मुखिया इनका प्रमुख होता है।”जो़लबुक” कुंवारों का विश्रांति कक्ष होता है। जहां गांव के युवा रात में आकर सोते हैं। यहां लिंग अथवा वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता है।

मिजो जनजाति में एक अनोखी परम्परा है जिसे “त्लोमड्इहना” नाम से जाना जाता है। दरअसल यह मिजो समाज में सुंदर नैतिक संहिता है जिसका अर्थ है- अतिथि सत्कार, मेहमाननवाजी, दयालुता,नि:स्वार्थता, साहस, परिश्रम एवं दूसरों को किसी भी प्रकार मदद देने की प्रवृत्ति। इसमें त्याग और सेवा भाव सर्वोपरि है। यही मिजो लोगों के जीवन दर्शन का केंद्र बिंदु है। इस समुदाय में सामाजिक कर्तव्यों व दायित्वों की पूर्ति हेतु श्रमदान और सहकारिता के व्यवहारिक सिद्धांत आदिकाल से ही स्वीकृत व मान्य रहे हैं। मिजो भाषा में इसे “ह्ननात्लांड्” कहते हैं। किसी अजनबी को भी सत्कार देना इनकी पहचान है। मिजो लोगों के धर्म को जीववाद की संज्ञा दी जाती है।इसे “साखुआ” शब्द से सम्बोधित किया जाता है जिसका अर्थ है- मिजो लोगों का जीवन सिद्धान्त या जीवन आधार। यहां पर खून के रिश्ते से जुड़े हुए बड़े समूह को जो अपने समुदाय की बोली बोलता है, “कुल” कहा जाता है। मिजो लोग जिस एक सर्वोच्च शक्ति में विश्वास करते हैं उसे “पाथियन” कहते हैं। दिवंगत बुरी आत्माओं को “रमहुअई” कहा जाता है। इस समुदाय में बलि प्रथा भी है जिसे “इनथोइना” कहते हैं। इस काम को अंजाम देने वाले पुरोहित को “सादोत” कहा जाता है। मिजो लोगों के तीन वार्षिकोत्सव हैं, जिन्हें “कूत” कहा जाता है। यह हैं- चपरार कूत,मिमकूत एवं पोल कूत। तीनों का सम्बन्ध खेती से है। मिजो लोग मृत्यु के जीवन के बाद के जीवन में भी विश्वास करते हैं।मिजो समाज पुरुष प्रधान व्यवस्था वाला समाज है, जिसमें सबसे छोटा बेटा ही चल व अचल संपत्ति का वारिस होता है।

Related -  बोड़ो आदिवासी समुदाय...

मिजो लोगों के लिए संगीत उतनी ही अपरिहार्य चीज़ है जितना जीवित प्राणियों के लिए हवा। संगीत के बिना मिजो लोगों का जीवन अधूरा है। सदियों से मिजो लोगों की अपनी विभिन्न धुने प्रचलित रही हैं। “जाइ” इनकी विशेष शैली होती है। यह लोग अपने उत्साह और उमंग से रात-रात भर, लगातार गाते और नाचते हैं।”चेरो” इनका सामुदायिक लोकनृत्य है जिसे कभी-कभी बांस का नृत्य भी कहा जाता है। “खुआल्लम” अतिथि नृत्य है।राल्लू-लम,सारलम-काइ,सोलाकिया,पारलम और छेइ-ह्मम भी मिजो लोगों के परम्परागत नृत्य हैं जिनमें घंटा,घडियाल,मंजीरे या ढोल वाद्ययंत्र प्रयोग में लाए जाते हैं। यद्यपि मिजो लोगों के पास अपनी लिपि नहीं है तथा वह रोमन लिपि प्रयुक्त करते हैं, तो भी आज उनके पास प्रचुर मात्रा में साहित्य है। मिजो समाज की संरचना में इसके हित अथवा अहित के लिए जो भी चीज आयी वह मिजो लोक साहित्य में शामिल हो गयी। चाहे वह उनके विस्थापन की पीड़ा हो, युद्ध की विभीषिका से जूझने की दास्तान हो या खेती के लिए उनके पसीने का उद्यम,सब की गहरी छाप उनके लोक साहित्य पर पड़ी है। विस्थापन और पहचान का संकट अभी भी उन्हें कष्ट देता है।

– डॉ.राजबहादुर मौर्य, झांसी


Next Post- लावारिश ” हाजाॅङ “आदिवासी समुदाय…

Previous Post- जीवंतता के साथ जीते “बोरोक आदिवासी” …
No ratings yet.

Love the Post!

Share this Post

प्रातिक्रिया दे जवाब रद्द करें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Seach this Site:

Search Google

About This Blog

This blog is dedicated to People of Deprived Section of the Indian Society, motto is to introduce them to the world through this blog.

Posts

  • मार्च 2023 (1)
  • फ़रवरी 2023 (2)
  • जनवरी 2023 (1)
  • दिसम्बर 2022 (1)
  • नवम्बर 2022 (3)
  • अक्टूबर 2022 (3)
  • सितम्बर 2022 (2)
  • अगस्त 2022 (2)
  • जुलाई 2022 (2)
  • जून 2022 (3)
  • मई 2022 (3)
  • अप्रैल 2022 (2)
  • मार्च 2022 (3)
  • फ़रवरी 2022 (5)
  • जनवरी 2022 (6)
  • दिसम्बर 2021 (3)
  • नवम्बर 2021 (2)
  • अक्टूबर 2021 (5)
  • सितम्बर 2021 (2)
  • अगस्त 2021 (4)
  • जुलाई 2021 (5)
  • जून 2021 (4)
  • मई 2021 (7)
  • फ़रवरी 2021 (5)
  • जनवरी 2021 (2)
  • दिसम्बर 2020 (10)
  • नवम्बर 2020 (8)
  • सितम्बर 2020 (2)
  • अगस्त 2020 (7)
  • जुलाई 2020 (12)
  • जून 2020 (13)
  • मई 2020 (17)
  • अप्रैल 2020 (24)
  • मार्च 2020 (14)
  • फ़रवरी 2020 (7)
  • जनवरी 2020 (14)
  • दिसम्बर 2019 (13)
  • अक्टूबर 2019 (1)
  • सितम्बर 2019 (1)

Latest Comments

  • Dr. Raj Bahadur Mourya पर पुस्तक समीक्षा- ‘‘मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा एवं तथागत बुद्ध’’, लेखक- आर.एल. मौर्य
  • अनाम पर पुस्तक समीक्षा- ‘‘मौर्य, शाक्य, सैनी, कुशवाहा एवं तथागत बुद्ध’’, लेखक- आर.एल. मौर्य
  • Dr. Raj Bahadur Mourya पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 39)
  • Somya Khare पर राजनीति विज्ञान / समाज विज्ञान, महत्वपूर्ण तथ्य (भाग- 39)
  • Govind dhariya पर धरकार समाज के बीच……

Contact Us

Privacy Policy

Terms & Conditions

Disclaimer

Sitemap

Categories

  • Articles (79)
  • Book Review (59)
  • Buddhist Caves (19)
  • Hon. Swami Prasad Mourya (22)
  • Memories (12)
  • travel (1)
  • Tribes In India (40)

Loved by People

“

015649
Total Users : 15649
Powered By WPS Visitor Counter
“

©2023 The Mahamaya | WordPress Theme by Superbthemes.com
hi हिन्दी
en Englishhi हिन्दी