आदिवासी समुदाय मीणा राजस्थान की प्रमुख जनजाति है। उत्तर – प्रदेश में भी मीणा समुदाय की आबादी पायी जाती है। मीणा लोग सिंधु सभ्यता के द्रविड़ लोग हैं जिनका गण चिन्ह मीन (मछली) है। प्राचीन काल में मीणा समुदाय की सभ्यता और संस्कृति काफी विकसित थी।अपनी रक्षा के लिए यह दुर्गों का उपयोग करते थे। अरावली की पर्वत श्रृंखलाओं में आज भी इस समुदाय की काफी बस्ती है। मीणा लोग स्वभाव से युद्ध प्रिय होते हैं।सम्मान और स्वाभिमान के लिए मर मिटने का जज्बा रखते हैं। दुर्गम इलाकों में निवास करने के कारण यह लोग साहसी होते हैं। मीणा समुदाय का जीवन सृजनशीलता, सामूहिकता और सह -अस्तित्व का सर्वोत्तम उदाहरण है। उनकी संस्कृति ,सार्वभौमिक, सार्वजनिक और सार्वकालिक है। मीणा समुदाय की पत्रिका “अरावली उद्घघोष”उदयपुर से प्रकाशित होती है।श्री बी.पी. वर्मा पत्रिका के संपादक हैं। हरीराम मीणा का उपन्यास “धूणे तपे तीर”मीणा आदिवासियों पर केन्द्रित है। वर्ष 2002 में प्रकाशित तेजिन्दर का उपन्यास “काला पादरी “तथा मनमोहन पाठक की कृति “गगन घटा घहरानी”आदिवासी लोक जीवन पर आधारित है। यद्यपि मीणा अन्य आदिवासी समुदायों की तुलना में अधिक शिक्षित हैं, परंतु यह भी बहुत अल्प है।
आदिवासी समुदाय में संस्कृति एक सहज व सतत प्रवाहित धारा है, किसी आन्दोलन या अभिमान का विषय नहीं। उनके लोक गीतों तथा लोक परम्पराओं की विषयवस्तु में वनोपज, कृषि कर्म,श्रम, पालतू पशु पक्षी, पर्व उत्सव, शादी ब्याह, जन्म मृत्यु, घरेलू औजार, पुरखे,मिथक चिन्ह, प्रकृति प्रदत्त वस्तुएं इत्यादि का पुट है। हरीराम मीणा ने अपनी पुस्तक “आदिवासी दुनिया”में लिखा है कि विस्थापन आदिवासियों की बड़ी समस्या है। आजादी के बाद से अब तक 1.6 करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं, जिसमें 40 प्रतिशत आदिवासी हैं।बस्तर की कुल 70 प्रतिशत आबादी आदिवासी है जो घने जंगलों में रहती है। वर्ष 1961 की जनगणना में देश में 650 भाषाएं थीं। वर्ष 2001 में इसमें 40 प्रतिशत भाषाएं विलुप्त पायी गयीं। जिसमें अधिकतर आदिवासियों की भाषाएं हैं। अण्डमान में फरवरी 2010 में एक 85 वर्षीय आदिवासी महिला “बोआ सीनियर ” की मृत्यु के बाद “बो भाषा”समाप्त हो गई। भारत में आज से लगभग 70 हजार वर्ष पहले अफ्रीका महाद्वीप से यह भाषा आयी थी। अब भारत में इस भाषा को बोलने वाला कोई नहीं है।वस्तुत: शिक्षा पाठ्यक्रम में आदिवासी जीवन तथा सांस्कृतिक परम्पराओं को शामिल कर इनका संरक्षण किया जा सकता है।
वर्ष 2011 में प्रकाशित मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट बताती है कि उत्तर -प्रदेश में भी आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) समुदाय की आबादी 0.8 प्रतिशत है। यह प्रदेश की कुल आबादी का 1.2 फीसदी है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के 70.3 प्रतिशत लोग मज़दूरी करके अपना जीवन यापन करते हैं।प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अभी आदिवासी समुदाय में साक्षरता की दर 45.6 प्रतिशत है, जिसमें उपरोक्त समुदाय की महिलाओं की साक्षरता दर मात्र 32.4 प्रतिशत है।
जब से श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने उत्तर प्रदेश में श्रम एवं सेवायोजन मंत्रालय की जिम्मेदारी सम्भाली है,तब से वह निरंतर पूरे प्रदेश में मजदूरों के अड्डों पर जाते हैं। उनसे सीधा संवाद करते हैं। उनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रयास करते हैं। आज प्रदेश सरकार के द्वारा अनेक कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन मजदूरों के हित में किया जा रहा है। मजदूर आदिवासियों को भी इससे सहायता मिली है।
डॉ. राजबहादुर मौर्य,झांसी
मीणा समाज वह जनजातीय समाज है जो भारत के संपूर्ण जनजातीय समाज में उच्च स्थान को प्राप्त कर चुका है । यह जनजातीय समाज न केवल भारत के निर्माण में अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, बल्कि अपने मौजूदगी का एहसास भी करा रहे हैं। आपके द्वारा इस समाज के ऊपर लिखा गया तथ्य शोधार्थी विद्वानों के लिए महत्वपूर्ण सामग्री होगी । ऐसा मेरा मानना है। आपको बहुत-बहुत साधुवाद।