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वेदना और व्यथा, मुसहर समुदाय की…….

Posted on जनवरी 11, 2020जुलाई 12, 2020
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“मुसहर” दो शब्दों से मिलकर बना है-मूस यानी चूहा तथा ‘हर’ अर्थात् उसका शिकार करने वाला।

इस प्रकार मुसहर भारत का वह अभागा समुदाय है जिसकी जीविका चूहा खाकर चलती थी। व्यवस्था का दंश झेल रहे मुसहर समुदाय की बस्तियां आज भी दूर- दराज के इलाकों में होती हैं। कभी बेबसी और भुखमरी में इस समुदाय में चूहा खाया गया होगा, लेकिन कलंक रूपी यह उपाधि उनकी आज़ भी जिंदा है।

ब्रिटिश काल में इस जाति को डिप्रेस्ड क्लास की श्रेणी में रखा गया था। 1871 में पहली जनगणना के बाद ,पहली बार इस समुदाय को अलग श्रेणी में रखकर जनजाति का दर्जा दिया गया। सामाजिक संरचना की इस कास्ट लाइन ने इसे एक घुमंतू जनजाति बना दिया, जो अब धीरे- धीरे एक समाज के रूप में संगठित होकर बसने लगी है। मुसहर ,बिहार से लेकर झारखण्ड, उत्तर – प्रदेश के पूर्वांचल और नेपाल की तराई में बसे हुए हैं। इन्हें मांझी नाम से भी जाना जाता है। यह मुसहर समुदाय की उपजाति है। उत्तर – बिहार में मांझी मल्लाह का टाइटल है। मगध क्षेत्र में मांझी को भुइयां बोलते हैं। बिहार में मुसहर समुदाय की आबादी लगभग 20 लाख है। इसमें पूर्वी चंपारण, मधुबनी, कटिहार, नवादा, गया, पटना आदि जिले शामिल हैं।

भारतीय समाज में जाति एक ऐसी संरचना है ,जिसमें व्यक्ति की मर्यादा जन्म से निश्चित होकर आजीवन अपरिवर्तनीय रहती है। मुसहर भारत के सबसे गरीब समुदायों में से एक है। यहां तक कि दलित समाज के लोग भी इन्हें अपने से नीचे मानते हैं। इस समुदाय के ज्यादातर लोग खेतिहर मजदूर हैं। इन्हें प्रतिदिन के भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अभाव एवं कुपोषण के कारण बीमारियां यहां बसेरा करती हैं। सरकारी योजनाएं बमुश्किल इन तक पहुंच पाती हैं। सरकारें बदलती हैं, परंतु इनके जीवन में बहुत कुछ नहीं बदला। अभी भी यह अपने पूर्वजों की तरह खाते,जीते और सोते हैं। यद्यपि नयी पीढ़ी इस पहचान से निकलना चाहती है,पर गरीबी आज़ भी वैसी ही है। थोड़ा बदलाव है, पर अभी वक्त और लगेगा। 2014 में बिहार के मुख्यमंत्री बने जीतनराम मांझी इसी समुदाय के हैं। वह 9 माह तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। बचपन में वह भी एक बड़े जमींदार के मवेशी चराया करते थे। उनके माता-पिता उसी जमींदार के यहां मज़दूरी करते थे। उन्हें प्रतिदिन काम के बदले एक किलो अनाज मिलता था। 2001 में मुसहर समुदाय की साक्षरता दर, पुरूषों की 13.67 प्रतिशत तथा महिलाओं की 7 प्रतिशत थी।

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जब से श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने पडरौना को अपना विधानसभा क्षेत्र बनाया, तभी से वह निरंतर मुसहर समुदाय के बीच पहुंचते रहे हैं। दिनांक 16.07.2017 को मुसहर विकास मंच कुशीनगर द्वारा गोला बाजार,कसया नगर पालिका विवाह भवन में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने हिस्सा लिया तथा उन्हें अंधविश्वासों, गलत परम्पराओं, कुरीतियों तथा पाखंड से बाहर निकलने की सीख दिया। समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अच्छा जीवन जीने के लिए प्रेरित किया। मुसहर समुदाय के दुःख दर्द को दूर करने तथा उनके हक़ और हुकूक के लिए इंसाफ की गुहार लगाने वाले श्री विभूति चौहान कहते हैं कि “स्वामी प्रसाद मौर्य हमारे रहनुमा हैं। हमें उनसे बड़ी उम्मीदें हैं। इसी आशा और विश्वास की बुनियाद पर हम समाज की बेहतरी के सपने संजोए जिंदा हैं। कभी तो मुसहर समाज का हक़,सम्मान और स्वाभिमान उसे मिलेगा।” वेदना, दर्द, कशिश, बेबसी और लाचारी की इस आवाज को सुना जाना चाहिए। अपमान और ज़लालत भरी जिंदगी से उन्हें मुक्ति मिलनी चाहिए। मानवीय गरिमा एवं सम्मान को बहाल किया जाना चाहिए

डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी

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1 thought on “वेदना और व्यथा, मुसहर समुदाय की…….”

  1. डॉ. बृजेन्द्र बौद्ध कहते हैं:
    जनवरी 31, 2020 को 11:15 पूर्वाह्न पर

    मैं आपके इस लेख को पढ़ने से मुझे मुसहर समुदाय कीं पीड़ा के बारे में पता चला । आप साधुवाद के पात्र है ।

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