मणिपुर के आदिवासी…
भारत की पूर्वी सीमा पर स्थित मणिपुर राज्य 22,327 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। मणिपुर का प्राचीन नाम” कंलैपाक्” है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक मणिपुर की कुल जनसंख्या 27,21,756 थी जिसमें 11,67,422 आदिवासियों की आबादी है।
मणिपुर के पूर्व में म्यांमार, उत्तर में नगालैंड, पश्चिम में असम और मिजोरम तथा दक्षिण में म्यांमार और मिजोरम है। मणिपुर की सीमा रेखा कुल 854 किलोमीटर है जिसमें 352 किलोमीटर अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा है। राज्य चारों तरफ से घिरी पहाड़ियों के बीच की घाटी में है। राज्य का 9/10 भाग पहाड़ियां हैं जिसमें राज्य की कुल 58.9 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। 41.1 प्रतिशत पर्वतीय आबादी है। यहां की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। घाटी और पर्वत राज्य के दो प्रमुख भौगोलिक क्षेत्र हैं।
घाटी को चावल का कटोरा कहा जाता है। इंफाल यहां की राजधानी है। स्वास्थ्यप्रद जलवायु और मनमोहक प्राकृतिक दृश्य पर्यटकों को मणिपुर बार बार आने के लिए लुभाता है। राज्य से लोकसभा में दो और राज्य सभा में एक प्रतिनिधि होता है। 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और 60 निर्वाचित सदस्यों वाली विधानसभा गठित की गई। इसमें से 19 अनुसूचित जन जाति और 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। मणिपुर में लम्बे समय तक राजाओं ने शासन किया है। यहां के राजवंशों का लिखित इतिहास 33 ई से पाखंगबा के राज्याभिषेक के साथ शुरू होता है। राजा कियाम्बा, खागेम्बा, चराइरोंबा, गरीब निवाज,भाग्यचंद्र और गंभीर सिंह यहां के राजा थे।
मणिपुर में 33 प्रकार की जनजातियां निवास करती हैं जो मुख्यत: दो बड़े समूहों- नागा और कुकी में बंटी हुई हैं। यह मंगोली नस्ल के हैं। कुकी तिब्बत- बर्मी भाषा परिवार से ताल्लुक रखते हैं।यह मिजोरम के मिजो लोगों से तथा म्यांमार के चिंह लोगों से मिलते- जुलते हैं। मणिपुर की भाषा “मितई” अथवा “मणिपुरी” है। यह रोमन लिपि में लिखी जाती है। यहां एक भाषा और बोली जाती है जिसे “लियांगमेई” कहते हैं। यह वर्ण संकर भाषा है जिसका जन्म असम के कछार में बोली जाने वाली भाषाओं के सम्पर्क से हुआ है। मणिपुर के लोगों का मुख्य भोजन चावल, मछली और मांस है। मणिपुर की जनजातियों में एमोल, अनल, चिरु, छोटे, गांगटे, इनपुरी, हमार, खरम, खोइबू, कोइरांव, क़ौम, लैमकंग, लियंगमई, माओ, मरम, मैरिंग, माटे, मोनसांग, मेयोन, पेट्थ, पुमई, पुरम, राल्टे, रोमई, सिम्टे, सुटी, तंखुल, ताराओ, थाडाओ, थंगाल, वफाई, जिमी और जो हैं।
आज मणिपुर के पास अपना समृद्धिशाली लोक साहित्य है। यहां के लेखक “न्गनगोम” की कविता में अंग्रेजों द्वारा किए गए धोखे का विलाप है। आपसी नस्ली टकराव, तथाकथित स्वतंत्रता सेनानियों के अविश्वसनीय आधार, भारतीय सेना के हाथों मानवाधिकार उल्लंघन तथा मणिपुरियों के अपने भ्रष्ट चरित्र लेखन में परिलक्षित होते हैं। मणिपुर में वर्ष भर त्योहार मनाये जाते हैं। यह यहां के निवासियों की सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक आकांक्षाओं का प्रतीक है।लाई हारोबा, रास लीला, चिराओबा, निंगोल चाक कुबा, रथ यात्रा, ईद-उल-फितर, इमोइनु, गान- नागी, लुई – नगाई, ईद -उल- जुहा, योशांग (होली), मेरा होचोंगबा, दुर्गा पूजा, दिवाली, कुट तथा क्रिसमस यहां के लोगों के मुख्य त्योहार हैं।
देश के अन्य हिस्सों में रह रहे आदिवासियों की तरह मणिपुर के आदिवासियों के साथ एकजुटता हमारी जरुरत है।
डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी
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