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बौद्ध संस्कृति, स्वतंत्रता, मुक्ति और खुशहाली के लिए जीवट के साथ जीवन जीता- वियतनामी समाज (भाग २)

Posted on नवम्बर 29, 2020नवम्बर 29, 2020
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अदम्य जिजीविषा से परिपूर्ण वियतनामी भाषा की अधिकांश शब्द राशि चीनी भाषा से ली गई है। यह पहले चीनी लिपि में ही लिखी जाती थी। जब वियतनाम फ्रांस का उपनिवेश था तब वियतनामी भाषा को अन्नामी कहा जाता था।

चीनी भाषा की भांति वियतनामी भाषा भी चित्रलिपि, अयोगात्मक और वाक्य में स्थान प्रधान है। चीनी की भांति अनामी ने भी रोमन लिपि को अपना लिया है। अमेरिका में भी १० लाख से अधिक वियतनामी भाषी लोग हैं। अमेरिका में यह सातवीं सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। वियतनाम की साक्षरता दर ९४ प्रतिशत है।

वियतनाम उत्तर और दक्षिण में विभाजित है। दक्षिण में उपजाऊ  मेकांग डेल्टा है इसलिए दक्षिण में जीवन आसान है। उत्तर में ग्रे आसमान, रिमझिम, धुन्ध और ठण्डी हवाओं की लम्बी सर्दी होती है। वियतनाम ५३ जातीय अल्पसंख्यक समुदायों का घर है। इनमें प्रमुख हैं- तयो, थाई, मूंग, हामोंग, नुंग, जारई और सेडंग।

वियतनाम में ६० हजार चाम रहते हैं जो खुद को हिन्दुओं के रूप में पहचानते हैं। वियतनाम की ३४५१ किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा है। यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल हालॉन्ग बे वियतनाम के मुकुट आभूषणों में से एक है।डान बाऊ तथा एकल तार वाला झरोखा वियतनाम के स्वदेशी वाद्य यंत्र हैं।

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डोन लाम तान

होआ हाओ एक वियतनामी बौद्ध आंदोलन था जिसकी शुरुआत वर्ष १९३९ में बौद्ध सुधारक हुइन्ह फु सो ने की थी। यह उपनिवेश विरोधी आंदोलन था। यहां बौद्ध भिक्षुओं ने तानाशाही सरकार के विरोध में अपने प्राणों की आहुति भी दी है। ११ जून १९६३ को बौद्ध समुदाय पर किए जा रहे अन्याय और अत्याचार के विरोध में भिक्षु चिथ क्वांग डक ने कम्बोडियन एम्बेसी के पास आत्मदाह कर लिया । इसके परिणामस्वरूप बौद्ध अनुयायियों को अत्याचारों से मुक्ति मिली तथा दक्षिण वियतनामी सरकार का पतन हुआ। उनकी आखिरी अपील थी- सरकार दया दिखाए और धार्मिक समरसता बरते।

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भारत में सारनाथ में गुलाबी बौद्ध मंदिर के संस्थापक डोन लाम तान एक वियतनामी हैं। उन्हें एक रात सपना आया जिसने उनकी जिंदगी बदल दी। वियतनाम में उन्होंने अपनी सारी जायदाद और यहां तक कि अपनी कार भी बेंच दी और बुद्ध देव की भक्ति में लीन हो गए। अपने देश को छोड़कर वह भारत आ गए।

६ दिसम्बर २००९ को उन्होंने सारनाथ में एक बुद्ध मंदिर की नींव रखी जो १२ दिसम्बर २०१४ को बनकर तैयार हो गया। इसका नाम शिवाली वियतनामी बुद्ध मंदिर भी है। हाल में ही यहां पर सम्राट अशोक की एक मूर्ति भी स्थापित की गई है। वियतनामी लेखक डुओंग थू हुआंग का विश्व प्रसिद्ध उपन्यास ‘ स्वर्ग का अंधा, १९८८ में अमेरिका से प्रकाशित हुआ।यह वियतनामी महिलाओं के जीवन संघर्ष पर आधारित है।

वियतनामी समाज में तथागत बुद्ध के प्रति लोगों में असाधारण सम्मान का भाव है। वह बुद्ध की छवि को कभी पैरों की ओर इंगित नहीं करते। आम लोग बौद्ध भिक्षुओं के सामने अपनी टोपी उतार लेते हैं तथा उन्हें बहुत विनम्रता से शिर झुकाकर प्रणाम करते हैं। हाल के वर्षों में विशाल बुद्ध मंदिरों का निर्माण किया गया है जिसमें चुआ बाई दीन्ह शामिल है। वियतनाम की विशाल बुद्ध मूर्तियां दानंग और वुंग ताऊ के तट को परिभाषित करती हैं।

वियतनामी पगोड़ा को फेंग शुई या स्थानीय रूप से दीया गीत कहा जाता है। यह बौद्ध पूजा स्थल हैं। अधिकांश एकमंजिला संरचनाएं हैं जिनमें तीन लकड़ी के दरवाजे होते हैं। अंदर कई कक्ष होते हैं।यह आमतौर पर बुद्ध तथा बोधिसत्व की मूर्तियों से भरे रहते हैं। चमकती परी रोशनी, विशाल धूम्र अगरबत्ती और विशाल घंटियां वायुमंडल को जोड़ती हैं।

भारत में हिन्दी भाषी बौद्ध प्रेमियों के बीच बहुत ही लोकप्रिय और प्रेरणादाई पुस्तक ‘ जहं जहं चरन परे गौतम के, के लेखक तिक न्यात हन्ह वियतनामी बौद्ध भिक्षु हैं।वह सैगोन के वान हन्ह बौद्ध विश्वविद्यालय के संस्थापक भी हैं। उनके जीवन का लम्बा समय विश्व शांति और आपसी भाईचारे के प्रयासों में बीता है। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर ने इन्हें १९६७ के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया था। तिक न्यात हन्ह लगभग ७५ से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। भारत में यह पुस्तक हिंद पाकेट बुक्स,नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित है। अंग्रेजी में यह पुस्तक Old Path White Could के नाम से प्रसिद्ध है।

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– डा. राजबहादुर मौर्य, फोटो गैलरी-संकेत सौरभ, अध्ययनरत एम.बी.बी.एस., झांसी, उ.प्र.(भारत)

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2 thoughts on “बौद्ध संस्कृति, स्वतंत्रता, मुक्ति और खुशहाली के लिए जीवट के साथ जीवन जीता- वियतनामी समाज (भाग २)”

  1. Toshi Anand कहते हैं:
    दिसम्बर 1, 2020 को 12:42 अपराह्न पर

    Vietnam is a very culturally vibrant country..i loved to know about india Vietnam connection in the article..Brilliant article SIR..

    प्रतिक्रिया
    1. Dr. Raj Bahadur Mourya कहते हैं:
      दिसम्बर 1, 2020 को 1:44 अपराह्न पर

      Thank you very much for appreciated

      प्रतिक्रिया

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