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शोकाकुल परिवारों के साथ….

Posted on जनवरी 17, 2020जुलाई 12, 2020
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सामाजिक सरोकारों से आबद्ध व्यक्ति समाज के सुख और दुःख दोनों का साथी होता है। सामाजिक व्यक्ति का चिंतन, कर्म और व्यवहार सामाजिकता की हर कड़ी से जुड़ता है। फिर चाहे वह उल्लास पूर्ण कार्यक्रम हो या दुःख की घडी। वस्तुत: दुःख से घिरे हुए व्यक्ति के लिए भावनात्मक संबल उसे जीवन दायिनी शक्ति बनकर जीवन जीने की प्रेरणा देता है। वहीं यह मानवीय सौजन्यता का एक अनुपम उदाहरण भी है।

किसी की अर्थी को कंधा देना, किसी के कलह को शांत करना, कहीं लगी हुई आग को बुझाना, किसी से प्रेम पूर्वक दो बातें करना, किसी बेबस को सहारा देना, करुणा मय भाव से मुस्कराना तथा शांति पूर्वक पग उठाना बुद्धत्व है।


श्री स्वामी प्रसाद मौर्य का जीवन और उस जीवन का प्रत्येक क्षण सामाजिक सोच से आबद्ध है। उनसे मत वैभिन्नता रखने वाले भी उनकी इस सदाशयता के कायल हैं।दबी जुबान से ही सही वह भी मानते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने नि: स्वार्थ सेवा भाव को अपनी राजनीति का आधार बनाया है। इसलिए वह जाति, धर्म, क्षेत्रीयता व संकीर्णता की दीवारों को तोड़कर सबके बन सके। अनगिनत लोग उन्हें बेइंतहा प्यार करते हैं।वह सबके लाडले हैं। उनके दौरे इस बात की तस्दीक करते हैं। हजारों की भीड़ घर पर, हजारों की भीड़ आफिस में और हजारों की भीड़ जहां भी वह जाते हैं,उनका इस्तकबाल करती है। यह अनायास ही नहीं है। इसके लिए जीवन को खपाना पड़ता है।


जून 1995 में जनपद प्रतापगढ़ के तहसील कुंडा के दिलेरगंज कस्बे में हुए जघन्य हत्या काण्ड में पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए विपरीत परिस्थितियों में भी श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने आंदोलन की कमान संभाली तथा पीड़ितों को इंसाफ दिलाया। इलाहाबाद के अमरूद बागान के बेदखल किसानों को उनका हक दिलाया। मेरठ के मायात्यागी बलात्कार एवं हत्याकांड में इंसाफ़ की जंग लड़ते हुए जेल गये। अपने मुफलिसी के दिनों के साथी, रायबरेली निवासी श्री महादेव प्रसाद मौर्य के आकस्मिक निधन के बाद उनके परिवार को सम्बल प्रदान किया। विधायक राजू पाल की हत्या का मामला हो या 2010 में प्रतापगढ़ के राम जानकी मंदिर के भगदड़ में मरे 65 लोगों के शोकाकुल परिवारों का प्रकरण हो, श्री स्वामी प्रसाद मौर्य उनके कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते हैं। अपने छोटे से छोटे कार्यकताओं की मुसीबतों में वह ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं।ऐसी सैकड़ों घटनाओं का जिक्र तिथि और समय के साथ किया जा सकता है।

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अन्तत: संक्षिप्तीकरण का जोखिम उठाते हुए यह कहा जा सकता है कि वह अपनी पूरी शक्ति तथा सामर्थ्य से मानवीय मूल्यों तथा गरिमा की स्थापना के लिए कृत संकल्पित हैं।


डॉ. राजबहादुर मौर्य, झांसी

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